विष्णु स्तम्भ है आज की तथाकथित क़ुतुब मीनार

रोहताश चौहान( इतिहासकार) पर किसी भी देश पर शासन करना है,तो उस देश के लोगों का ऐसा ब्रेनवाश कर दो कि वो अपने देश, अपनी संस्कृति और अपने पूर्वजों पर गर्व करना छोड़ दें। इस्लामी हमलावरों और उनके बाद अंग्रेजों ने भी भारत में यही किया। हम अपने पूर्वजों पर गर्व करना भूलकर उन अत्याचारियों को महान समझने लगे जिन्होंने भारत पर बे हिसाब जुल्म किये न थे।इन्होंने हमारी संस्कृति व धरोहरों को ही मिटाने के लिए अपने नाम की इबादत तब के लिवाल लिख दी। विष्णु स्तम्भ को हजारो वर्ष मांगते पहले बनाया गया था इसके बाद 11वी इशारा पारी शदी के सम्राट पृथ्वीराज चौहान के शासन काल मे इसका जीणोर्धार किया गया बताया जाता है दांत कथा है कि दिन सम्राट पृथ्वीराज चौहान की पुत्री बेला विष्णु स्तम्भ पर चढ़कर यमुना के दर्शन कर ही खाना खाती थी सम्राट का पिथोरा गढ़ किला इसी विष्णु स्तम्भ के पास है।सरकार व पुरातत्व विभाग की अनदेखी के कारण किले का अस्तित्व खतरे में है।मुगल शासकों ने हमारे किलो मंदिरों व धरोहरों को नष्ट करने का भरपूर जिम्मेदारी प्रयास किया। अगर आप दिल्ली घुमने गए है तो आपने कभी विष्णू स्तम्भ (कुतुबमीनार) को भी अवश्य देखा होगा, जिसके बारे में बताया दोनों जाता है कि उस कुतुबुद्दान एबक जाता है कि उसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनबाया था. हम कभी जानने की को-ि शश भी नहीं करते हैं कि कुतुबुद्दीन कौन 1210 था, उसने कितन वष दिल्ली पर शासन था, उसने कितने वर्ष दिल्ली पर शासन किया, उसन कब विष्णू स्तम्भ किया, उसने कब विष्णू स्तम्भ इस्लाम (कुतुबमीनार) का बनवाया या विष्णू स्तम्भ (कुतूबमानार) से पहले वो आर क्या क्या बनवा चुका था ? दा खराद हुए गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक, मोहम्मद गौरी का खर- पैदा हुआ गुलाम था. मोहम्मद गौरी भारत विष्णु पर कई हमले कर चुका था मगर हर बार उसे हारकर वापस जाना पड़ा था. ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की जासूसी और कुतुबुद्दीन की रणनीति के कारण मोहम्मद गौरी, तराइन की लड़ाई में पृथ्वीराज । चौहान को हराने में कामयाब रहा और अजमेर,दिल्ली पर उसका कब्जा हो गया। ढाई दिन का झोपड़ा  जिसको अजमेर पर कब्जा होने के बाद मोहम्मद गौरी ने चिश्ती से इनाम मांगने को कहा. तब चिश्ती ने अपनी जासूसी का इनाम मांगते हुए, एक भव्य मंदिर की तरफ 11वी इशारा करके गौरी से कहा कि तीन दिन में इस मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना में सेट किया कर दो. तब कुतुबुद्दीन ने कहा आप तीन दिन कह रहे हैं मैं यह काम ढाई दिन में बेला कर के आपको दूंगा ।कुतुबुद्दीन ने ढाई दिन में उस मंदिर को पिथोरा तोड़कर मस्जिद में बदल दिया. आज भी पास यह जगह अढाई दिन का झोपड़ार के नाम से जानी जाती है. जीत के बाद मोहम्मद गौरी, पश्चिमी भारत की जिम्मेदा- किलो री स्कुतुबुद्दीन को और पूर्वी भारत की जिम्मेदारी अपने दुसरे सेनापति बख्तियार खिलजीर (जिसने नालंदा को जलाया था) को सौंप कर वापस चला गय था । दोनों गुलाम को शासन  कुतुबुद्दीन कुल चार साल ( 1206 से 1210 तक) दिल्ली का शासक रहा. इन चार साल में वो अपने राज्य का विस्तार, इस्लाम के प्रचार और बुतपरस्ती का खात्मा करने में लगा रहा. हांसी, कन्नौज, आर बदायू, मरठ, अलीगढ़, कालिजर, महोबा, आदि को उसने जीता. अजमेर के विद्रोह को दबाने के साथ राजस्थान के भी कई इलाकों में उसने काफी आतंक मचाया ।विष्णु स्तम्भ  जिसे कुतुबमीनार कहते हैं वो महाराजा वीर विक्रमादित्य की वेदशाला थी. जहा बैठकर खगोल शास्त्री वराहमिहर ने ग्र, नक्षत्रों, तारों का अध्ययन कर, भारतीय कैलेण्डर विक्रम संवत का आविष्कार किया था. यहां पर 27 छोटे छोटे भवन (मंदिर) थे जो 27 नक्षत्रों के प्रतीक थे और मध्य में विष्णू स्तम्भ था, जिसको ध्रुव स्तम्भ भी कहा जाता था । दिल्ली पर कब्जा करने के बाद उसने उन 27 मंदिरों को तोड़ दिया. विशाल विष्णु स्तम्भ को तोड़ने का तरीका समझ आने पर उसने उसको तोड़ने के बजाय अपना नाम दे दिया. तब से उसे कुतुबमीनार कहा जाने लगा. कालान्तर में यह यह झूठ प्रचारित किया गया कि कुतुब मीनार को कुतुबुद्दीन ने बनबाया था. जबकि वो एक विध्वंशक था न कि कोई निमार्ता. कुतुबुद्दीन ऐबक की मौत का सच  अब बात करते हैं कुतुबुद्दीन की मौत की. इतिहास की किताबो में लिखा है कि उसकी मौत पोलो खेलते समय घोड़े से गिरने पर से हुई. ये अफगान तुर्क लोग पोलोर नहीं खेलते थे, पोलो खेल अंग्रेजों ने शुरू किया. अफगान, तुर्क लोग बुजकशी खेलते हैं जिसमे एक बकरे को मारकर उसे लेकर घोड़े पर भागते है, जो उसे लेकर मंजिल तक पहुंचता है, वो जीतता है। कुतबुद्दीन ने अजमेर के विद्रोह को कुचलने के बाद राजस्थान के अनेकों इलाकों में कहर बरपाया था. उसका सबसे कड़ा विरोध उदयपुर के राजा ने किया, परन्तु कुतुबहान उसका हरान म कामयाब रहा. उसने धोखे से राजकुंवर कर्णसिंह को बंदी बनाकर और उनको जान से मारने की धमकी देकर, राजकुंवर और उनके घोड़े शुभ्रक को पकड़ कर लाहौर ले आया


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प्रतापगढ़ :
आज मनुष्य भौतिकतावाद की आंधी में बहकर अधिकतम धन-सम्पत्ति अर्जन कर, भोग-विलास के साधनों से क्षणिक सुखों की म्रगतृष्णा में भटक रहा है,इसलिए वह ईश्वर प्रदत्त शाश्वत शांति और आंनंद प्राप्ति से दूर ही होता जा रहा है। अज्ञानता वश इस सत्य से अनभिज्ञ है,की सुख-दुख की अनुभूति करने वाला केवल एक ही मन है। सनातन वैदिक धर्म की मान्यताओं में इसलिए सुख विशेष की अवस्था को स्वर्ग तथा दुख विशेष की अवस्था को ही नर्क कहा गया है। शांति के बिना आनंद की प्राप्ति सम्भव नही यही जगत का अटल सत्य है। सुख-दुख केवल एक मन की अवस्था का नाम है। ऐसा होना कभी सम्भव नही की संवेदनहीन निष्ठुर,कठोर ह्रदय से हम दुखों की अनुभूतियों को नजर -अंदाज कर दें और उसी ह्रदय से सुख,आनंद अनुभव कर लें इन अनुभूतियों के लिए ह्रदय का संवेदनशील होना आवश्यक है। वेद का शाब्दिक अर्थ ही ज्ञान है। वह सनातन, सार्वभौमिक होने के साथ विज्ञान न्याय,धर्म सम्मत भी है। जगत नियंता ईश्वर ही श्रष्टि का आटो माइन सिस्टम है। उसके विधान को विज्ञान की कोई भी तकनीक से बदलना सम्भव नही है। इसका सीधा सा एक अर्थ है,की दूसरे जीवों की पीड़ाओं, कष्टों, दुखों, परेशानियों को महसूस करने के प्रति,मनुष्य जितना उदासीन ,संवेदनहीन होगा,वह सुख-आंनद की अनुभूति से भी उतना ही वंचित रहेगा।दूसरे का अहित चाहने का विचार भी हमारे ही मन में उपजता है ऐसा होते ही हमारी हानि की शुरुआत हो जाती है। क्रोध करते ही हमारा बी.पी बढ़ने लगता है।निराशा,कुंठा अवसाद के विचार मन में आते ही डिप्रेशन,एन्जायटी,लो-बी.पी की समस्या घर करने लगती है।आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के नवीन शोधों के निष्कर्ष भी अब यही जता रहे है नकारात्मक विचारों का हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। भविष्य की दुनियां में रोग- निदान में मनोचिकित्सा की बहुत बडी भूमिका उभर कर सामने आयेगी।