जिलाधिकारी ने आरओ प्लांट का किया शुभारम्भ

जिलाधिकारी कार्यालय परिसर में आने वाले फरियादियों को अब प्यासा नहीं रहना पड़ेगा। डीएम अमित किशोर के प्रयास से लंबे समय बाद कलेक्ट्रेट परिसर में शुद्ध पेयजल नसीब होगा। एचडीएफसी बैंक के सौजन्य से कलेक्ट्रेट परिसर में लगाए गए आरओ प्लांट का डीएम ने सोमवार को फीता काटकर शुभारंभ किया। डीएम ने प्लांट कक्ष का निरीक्षण भी किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि सभी लोगों को जल संरक्षित करना चाहिएहमें कम से कम पानी खर्च करने का प्रयास करना चाहिएउन्होंने कहा कि आपूर्ति एजेंसी इसका पांच वर्ष तक अनुरक्षण करे। उन्होंने यह भी कहा कि कलेक्ट्रेट में आने वाले आम नागरिकों व अधिवक्ताओं को शुद्ध पेयजल के लिए काफी दिनों से दिक्कत उठानी पड़ रही थीइसको देखते हुए आरओ प्लांट लगाए जाने की आवश्यकता महसूस की गई। जिसे एचडीएफसी बैंक के सौजन्य से स्थापित किया गया। इस आरओ प्लांट की क्षमता दो हजार लीटर हैइस अवसर पर मुख्य राजस्व अधिकारी राम सहाय यादव, अपर जिलाधिकारी प्रशासन राकेश कुमार पटेल, एचडीएफसी बैंक के प्रबंधक शिवराम द्विवेदी, क्षेत्रीय शासकीय प्रमुख पुलकित सौत्रिय, अधिवक्ता बृजबांके तिवारी आदि मौजूद रहे।


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प्रतापगढ़ :
आज मनुष्य भौतिकतावाद की आंधी में बहकर अधिकतम धन-सम्पत्ति अर्जन कर, भोग-विलास के साधनों से क्षणिक सुखों की म्रगतृष्णा में भटक रहा है,इसलिए वह ईश्वर प्रदत्त शाश्वत शांति और आंनंद प्राप्ति से दूर ही होता जा रहा है। अज्ञानता वश इस सत्य से अनभिज्ञ है,की सुख-दुख की अनुभूति करने वाला केवल एक ही मन है। सनातन वैदिक धर्म की मान्यताओं में इसलिए सुख विशेष की अवस्था को स्वर्ग तथा दुख विशेष की अवस्था को ही नर्क कहा गया है। शांति के बिना आनंद की प्राप्ति सम्भव नही यही जगत का अटल सत्य है। सुख-दुख केवल एक मन की अवस्था का नाम है। ऐसा होना कभी सम्भव नही की संवेदनहीन निष्ठुर,कठोर ह्रदय से हम दुखों की अनुभूतियों को नजर -अंदाज कर दें और उसी ह्रदय से सुख,आनंद अनुभव कर लें इन अनुभूतियों के लिए ह्रदय का संवेदनशील होना आवश्यक है। वेद का शाब्दिक अर्थ ही ज्ञान है। वह सनातन, सार्वभौमिक होने के साथ विज्ञान न्याय,धर्म सम्मत भी है। जगत नियंता ईश्वर ही श्रष्टि का आटो माइन सिस्टम है। उसके विधान को विज्ञान की कोई भी तकनीक से बदलना सम्भव नही है। इसका सीधा सा एक अर्थ है,की दूसरे जीवों की पीड़ाओं, कष्टों, दुखों, परेशानियों को महसूस करने के प्रति,मनुष्य जितना उदासीन ,संवेदनहीन होगा,वह सुख-आंनद की अनुभूति से भी उतना ही वंचित रहेगा।दूसरे का अहित चाहने का विचार भी हमारे ही मन में उपजता है ऐसा होते ही हमारी हानि की शुरुआत हो जाती है। क्रोध करते ही हमारा बी.पी बढ़ने लगता है।निराशा,कुंठा अवसाद के विचार मन में आते ही डिप्रेशन,एन्जायटी,लो-बी.पी की समस्या घर करने लगती है।आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के नवीन शोधों के निष्कर्ष भी अब यही जता रहे है नकारात्मक विचारों का हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। भविष्य की दुनियां में रोग- निदान में मनोचिकित्सा की बहुत बडी भूमिका उभर कर सामने आयेगी।