सम्मान के साथ महिलाओं का जीने का अधिकार है : सांसद

 सांसद डा.रमापति राम त्रिपाठी ने कहा कि मोदी सरकार ने मुस्लिम समाज की महिलाओं को सम्मान के साथ जीने का अधिकार दिया। तीन तलाक के कारण मुस्लिम बहनों का जीवन नरक बना गया थासांसद भाजपा महिला मोर्चा की तरफ से जिला पंचायत सभागार में तीन तलाक विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रदेश में जब पहली बार भाजपा की सरकार बनी तो महिलाओं को कानून बना कर अधिकार दिया गया। पति की मृत्यु के बाद संपत्ति पर केवल बेटों का नाम नहीं होगा, बल्कि पहला नाम पत्नी का होगा। दूसरी बार जब भाजपा सरकार बनी तो पिता की संपत्ति में बेटी को भी अधिकार दिया। पंचायत चुनावों में एक तिहाई सीट महिलाओं के लिए देने का काम भी भाजपा सरकार ने किया। नपा अध्यक्ष अलका सिंह ने कहा कि तीन तलाक कानून को लेकर महिलाओं को जागरूक करना होगा। क्षेत्रीय अध्यक्ष महिला मोर्चा सुनीता श्रीवास्तव ने कहा कि तीन तलाक समाज के लिए कलंक था।। शिक्षिका अल्पना सिंह ने कहा कि तीन तलाक एक ऐसा अभिशाप था जो हमारी बहनों को अकल्पनीय पीड़ा देता था। जिलाध्यक्ष डा.अंतर्यामी सिंह, महिला मोर्चा जिलाध्यक्ष भारती शर्मा, पूर्व विधायक रोवद्र प्रताप मल्ल, कृष्णानाथ राय, विशंभर मिश्र, जितेंद्र पांडेय, रामशीष प्रसाद आदि मौजूद रहीं।


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प्रतापगढ़ :
आज मनुष्य भौतिकतावाद की आंधी में बहकर अधिकतम धन-सम्पत्ति अर्जन कर, भोग-विलास के साधनों से क्षणिक सुखों की म्रगतृष्णा में भटक रहा है,इसलिए वह ईश्वर प्रदत्त शाश्वत शांति और आंनंद प्राप्ति से दूर ही होता जा रहा है। अज्ञानता वश इस सत्य से अनभिज्ञ है,की सुख-दुख की अनुभूति करने वाला केवल एक ही मन है। सनातन वैदिक धर्म की मान्यताओं में इसलिए सुख विशेष की अवस्था को स्वर्ग तथा दुख विशेष की अवस्था को ही नर्क कहा गया है। शांति के बिना आनंद की प्राप्ति सम्भव नही यही जगत का अटल सत्य है। सुख-दुख केवल एक मन की अवस्था का नाम है। ऐसा होना कभी सम्भव नही की संवेदनहीन निष्ठुर,कठोर ह्रदय से हम दुखों की अनुभूतियों को नजर -अंदाज कर दें और उसी ह्रदय से सुख,आनंद अनुभव कर लें इन अनुभूतियों के लिए ह्रदय का संवेदनशील होना आवश्यक है। वेद का शाब्दिक अर्थ ही ज्ञान है। वह सनातन, सार्वभौमिक होने के साथ विज्ञान न्याय,धर्म सम्मत भी है। जगत नियंता ईश्वर ही श्रष्टि का आटो माइन सिस्टम है। उसके विधान को विज्ञान की कोई भी तकनीक से बदलना सम्भव नही है। इसका सीधा सा एक अर्थ है,की दूसरे जीवों की पीड़ाओं, कष्टों, दुखों, परेशानियों को महसूस करने के प्रति,मनुष्य जितना उदासीन ,संवेदनहीन होगा,वह सुख-आंनद की अनुभूति से भी उतना ही वंचित रहेगा।दूसरे का अहित चाहने का विचार भी हमारे ही मन में उपजता है ऐसा होते ही हमारी हानि की शुरुआत हो जाती है। क्रोध करते ही हमारा बी.पी बढ़ने लगता है।निराशा,कुंठा अवसाद के विचार मन में आते ही डिप्रेशन,एन्जायटी,लो-बी.पी की समस्या घर करने लगती है।आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के नवीन शोधों के निष्कर्ष भी अब यही जता रहे है नकारात्मक विचारों का हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। भविष्य की दुनियां में रोग- निदान में मनोचिकित्सा की बहुत बडी भूमिका उभर कर सामने आयेगी।