तथ्यों और कानून को देखकर फैसला लेते है : जस्टिस बोबडे

नई दिल्ली (एजेंसी)। अयोध्या राम जन्मभूमि के मुकदमे को सुनने वाले न्यायाधीश जस्टिस शरद अरोवद बोबडे अयोध्या विवाद आठ वर्ष तक सुप्रीम कोर्ट में लंबित रहने के सवाल पर कहते हैं कि उन्हें नहीं लगता कि ऐसा जानबूझकर हुआ। इसके पीछे और कई कारण हो सकते हैं। जैसे मुकदमे से जुड़े रिकार्ड के अनुवाद में बहुत वक्त लगना, सुनवाई करने वाली पीठ का गठन न हो सकना आदि। भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश नियुक्त होने के बाद जस्टिस बोबडे से पूछा गया कि क्या फैसला लिखने में न्यायाधीशों की अपनी आस्था और विश्वास का प्रभाव होता है तो उन्होंने कहा नहीं ऐसा नहीं है। न्यायाधीश इस सबसे ऊपर उठ कर मुकदमे के तथ्यों और कानून को देखकर फैसला देते हैंये चीजें उनके आड़े नहीं आतीं


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प्रतापगढ़ :
आज मनुष्य भौतिकतावाद की आंधी में बहकर अधिकतम धन-सम्पत्ति अर्जन कर, भोग-विलास के साधनों से क्षणिक सुखों की म्रगतृष्णा में भटक रहा है,इसलिए वह ईश्वर प्रदत्त शाश्वत शांति और आंनंद प्राप्ति से दूर ही होता जा रहा है। अज्ञानता वश इस सत्य से अनभिज्ञ है,की सुख-दुख की अनुभूति करने वाला केवल एक ही मन है। सनातन वैदिक धर्म की मान्यताओं में इसलिए सुख विशेष की अवस्था को स्वर्ग तथा दुख विशेष की अवस्था को ही नर्क कहा गया है। शांति के बिना आनंद की प्राप्ति सम्भव नही यही जगत का अटल सत्य है। सुख-दुख केवल एक मन की अवस्था का नाम है। ऐसा होना कभी सम्भव नही की संवेदनहीन निष्ठुर,कठोर ह्रदय से हम दुखों की अनुभूतियों को नजर -अंदाज कर दें और उसी ह्रदय से सुख,आनंद अनुभव कर लें इन अनुभूतियों के लिए ह्रदय का संवेदनशील होना आवश्यक है। वेद का शाब्दिक अर्थ ही ज्ञान है। वह सनातन, सार्वभौमिक होने के साथ विज्ञान न्याय,धर्म सम्मत भी है। जगत नियंता ईश्वर ही श्रष्टि का आटो माइन सिस्टम है। उसके विधान को विज्ञान की कोई भी तकनीक से बदलना सम्भव नही है। इसका सीधा सा एक अर्थ है,की दूसरे जीवों की पीड़ाओं, कष्टों, दुखों, परेशानियों को महसूस करने के प्रति,मनुष्य जितना उदासीन ,संवेदनहीन होगा,वह सुख-आंनद की अनुभूति से भी उतना ही वंचित रहेगा।दूसरे का अहित चाहने का विचार भी हमारे ही मन में उपजता है ऐसा होते ही हमारी हानि की शुरुआत हो जाती है। क्रोध करते ही हमारा बी.पी बढ़ने लगता है।निराशा,कुंठा अवसाद के विचार मन में आते ही डिप्रेशन,एन्जायटी,लो-बी.पी की समस्या घर करने लगती है।आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के नवीन शोधों के निष्कर्ष भी अब यही जता रहे है नकारात्मक विचारों का हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। भविष्य की दुनियां में रोग- निदान में मनोचिकित्सा की बहुत बडी भूमिका उभर कर सामने आयेगी।