एक लाख से अधिक बच्चे 'किंगडम ऑफ ड्रीम्स' का मुफ्त आनंद लेंगे

 एक लाख से अधिक बच्चे हरियाणा स्थित गुरुग्राम के 'किंगडम ऑफ ड्रीम्स' में नि:शुल्क घूमने का आनंद ले सकेंगे। हरियाणा सरकार 19 दिसंबर से 23 दिसंबर तक गुरुग्राम में राज्यस्तरीय बाल महोत्सव आयोजित करने जा रही है। राज्यस्तरीय इस बाल महोत्सव-2019 की थीम 'ए ड्रीम कम ट्रू' रहेगी। 
दिल्ली स्थित हरियाणा भवन में यह जानकारी राज्य बाल कल्याण परिषद के मानद महासचिव कृष्ण ढुल ने दी। उन्होंने बताया कि इस पांच दिवसीय राज्यस्तरीय बाल महोत्सव के दौरान 'किंगडम ऑफ ड्रीम्स' में बच्चों के मनोरंजन के लिए विभिन्न प्रकार की गतिविधियों का भी प्रबंध रहेगा। सर्दी के मौसम के दृष्टिगत प्रतिदिन दो हजार बच्चों के रात्रि ठहराव का भी निशुल्क रूप से प्रबंध रहेगा। 
कृष्ण ढुल ने बताया कि हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चैटाला 19 दिसंबर को राज्यस्तरीय बाल महोत्सव-2019 का शुभारंभ करेंगे। हरियाणा के राज्यपाल सत्यदेव नारायण आर्य 23 दिसंबर को समापन समारोह में प्रतियोगिताओं के विजेता बच्चों को पुरस्कृत करेंगे।
बाल महोत्सव में केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री कृष्ण पाल गुर्जर, केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री रतन लाल कटारिया, केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कायार्न्वयन राज्यमंत्री राव इंद्रजीत सिंह भी शिरकत करेंगे।
राज्यस्तरीय इस बाल महोत्सव में विभिन्न 32 प्रतियोगिताओं में बच्चे प्रतिभगिता करेंगे। खेल जगत से बजरंग पूनिया, योगेश्वर दत, फौगाट बहनें तथा सिनेमा जगत से रणदीप हुड्डा व विवेक ओबेराय भी इसमें आएंगे। साथ ही हरियाणवी कलाकार भी भाग लेंगे। hindustan



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प्रतापगढ़ :
आज मनुष्य भौतिकतावाद की आंधी में बहकर अधिकतम धन-सम्पत्ति अर्जन कर, भोग-विलास के साधनों से क्षणिक सुखों की म्रगतृष्णा में भटक रहा है,इसलिए वह ईश्वर प्रदत्त शाश्वत शांति और आंनंद प्राप्ति से दूर ही होता जा रहा है। अज्ञानता वश इस सत्य से अनभिज्ञ है,की सुख-दुख की अनुभूति करने वाला केवल एक ही मन है। सनातन वैदिक धर्म की मान्यताओं में इसलिए सुख विशेष की अवस्था को स्वर्ग तथा दुख विशेष की अवस्था को ही नर्क कहा गया है। शांति के बिना आनंद की प्राप्ति सम्भव नही यही जगत का अटल सत्य है। सुख-दुख केवल एक मन की अवस्था का नाम है। ऐसा होना कभी सम्भव नही की संवेदनहीन निष्ठुर,कठोर ह्रदय से हम दुखों की अनुभूतियों को नजर -अंदाज कर दें और उसी ह्रदय से सुख,आनंद अनुभव कर लें इन अनुभूतियों के लिए ह्रदय का संवेदनशील होना आवश्यक है। वेद का शाब्दिक अर्थ ही ज्ञान है। वह सनातन, सार्वभौमिक होने के साथ विज्ञान न्याय,धर्म सम्मत भी है। जगत नियंता ईश्वर ही श्रष्टि का आटो माइन सिस्टम है। उसके विधान को विज्ञान की कोई भी तकनीक से बदलना सम्भव नही है। इसका सीधा सा एक अर्थ है,की दूसरे जीवों की पीड़ाओं, कष्टों, दुखों, परेशानियों को महसूस करने के प्रति,मनुष्य जितना उदासीन ,संवेदनहीन होगा,वह सुख-आंनद की अनुभूति से भी उतना ही वंचित रहेगा।दूसरे का अहित चाहने का विचार भी हमारे ही मन में उपजता है ऐसा होते ही हमारी हानि की शुरुआत हो जाती है। क्रोध करते ही हमारा बी.पी बढ़ने लगता है।निराशा,कुंठा अवसाद के विचार मन में आते ही डिप्रेशन,एन्जायटी,लो-बी.पी की समस्या घर करने लगती है।आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के नवीन शोधों के निष्कर्ष भी अब यही जता रहे है नकारात्मक विचारों का हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। भविष्य की दुनियां में रोग- निदान में मनोचिकित्सा की बहुत बडी भूमिका उभर कर सामने आयेगी।